दुनिया ने बहुत सिखाया पर हर बार भूल मैं जाता हूं।
करूँ प्रेम और रंजिश किस से अक्सर समझ नहीं पाता हूं।।
लौट-फेर हर बार मैं इस दुविधा में घिरता जाता हूँ।
मिठी रिश्तों की दुनिया में क्यों बुद्धि का प्रयोग लगता हूं।।
मानव हूँ फिर मानवता का पाठ भूल क्यों
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