
भोर की लाली हृदय में
आस फिर से भर गयी,
जब दिखी अरुणिम किरन
चंचल हुआ यह मन-हिरन
प्रीति की मीठी उमंगों को लिए
लाज की उर्मिल तरंगों को लिए
प्रात की शीतल हवा जो छू गयी,
तन-बदन में खुशबू सी तैरकर
अंतर्मन को फिर सुरभित कर गयी।
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