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रातों के साए कुछ गुन गुनाए

रातों के साए कुछ गुन गुनाए
महकती हैं सारी ये फ़िज़ाएं 

कुछ तो बोलों तुम मुझसे 
खोलों तुम अपनी बंद जुबाएं

रखा नहीं हैं कुछ भी इश्क़ में
चल हम दोनों कुछ कमाएं

कभी तुम लौटों गांव को अपने
राह में तुम्हारी हम फूल सजाएं

कुछ तो ऐसा सरकार कर दें 
शहर से
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