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मेरी कलम

मैं कभी भी उस के बारे में लिखने नहीं बैठता हूं

मैं तो सिर्फ़ उस के बारे में लिखने का सोचता हूं 

मेरी कलम उस को ख़ुद ब ख़ुद लिखती हैं

जैसे कि मेरी कलम पहले से ही जानती हैं 




कि मुझे उस से कब और क्या ?

कहने को दिल करता हैं 

जैसे वो वाकिफ हो मेरे हर जज़्बातों से

उसके बारे में ख़ुद से किए गए बातों से

तन्हाइयों में उसे याद किए गए रातों में

ख़्वाबों में की गई सारी मुलाकातों से




मगर फिर भी यहीं एक मलाल रहेगा उम्र भर

उसके बारे में मुझसे सवाल किया जाएगा उम्र भर

मेरी मोहब्बत अधूरी रह कर भी एक निशानी छोड़ेगी

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