आम के बाग फिर से बौराए हैं,
हम लौटकर वहीं से आए हैं,
बसन्त ऋतु है, दृश्यता बसन्ती है,
मगर वो पतझडों की दास्तां छुपाए हैं।
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आम के बाग फिर से बौराए हैं,
हम लौटकर वहीं से आए हैं,
बसन्त ऋतु है, दृश्यता बसन्ती है,
मगर वो पतझडों की दास्तां छुपाए हैं।
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