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नारी एक योद्धा

सदियों से गाथा अपमान की गाई जा रही है,

सुनो मानवी अब तुम्हारे सम्मान की लड़ाई है,

क्यों सहती हो इतना कष्ट तुम नारी,

उठो अब बारी विध्वंस की आई है ।।


ख़ुद का सोचे बिना शीश सदा तुमने झुकाएं है,

कोई समझे नहीं तेरी क्या

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