
“शब्द”
वाणी से प्रेषित होते
मन के जो बोल
कभी शून्य कभी पूर्ण
संवाद अनमोल
आज प्रस्तुत कर रहा
शब्दों का वो कोष।
भाषा हो किंचित कोई
भाव समेटे चाहे कोई
शब्दों का आवाहन कर
जीवन को
निस्तारित करते
हृदय के वचनों को पिरो
शब्दों की माला बुनते।
शब्द दिखाते
प्रतिबिम्ब हृदय का
मानव के भावों का
रिश्तों के प्रभावों का
सामाजिक सद्भावों का
और हो बनफूल
श्रिंगार करते
कवियों की वाणी का।
वेद, पुराण, ग्रंथ बने जिनसे
बड़े बड़े नाम बने जिनसे
यह वही शब्द हैं हे प्रिये
बने मधुर राग जिनसे।
शब्दों की कपोलें कच्ची
पर भावना सदा रहे सच्ची
रहते औत प्रोत
हृदय के उद्गारों से
कभी सरल कभी कठीन
उद्वेग भरे विचारों से।
द्वेष, राग, रोष, प्रतिशोध
अज्ञानता, संज्ञानता
का ना रहे कभी बोध
कभी प्रेम, कभी
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