“निःशब्द”'s image
105K

“निःशब्द”

निःशब्द


हैं केवल दो शब्द

मन के भाव समाए जिनमें

थाह नहीं जिसका

अंतर्द्वंद समेटे खुद में। 


कभी अपनों की बातें

बातें कभी अनजानों की

करती प्रतिदिन

फिर भी खड़ा रहा मौन

निःशब्दमैं ना जाने क्यूँ?


देखे गाहे-बगाहे मेले कई

जीवन के वो रंग कई

व्याख्या करूँ कैसे

विचार अनवरत बुझ रहे

फिर भी खड़ा रहा मौन

निःशब्दमैं ना जाने क्यूँ?


कभी हृदय भेदते कटाक्ष

कभी नेत्र करते अट्टहास

प्रेषित करतेअपने क्यूँ?

कचोटते अंतरात्मा को

फिर भी खड़ा रहा मौन

निःशब्दमैं ना जाने क्यूँ?


क्या वो युगल प्रेमी थे?

थे समर्पित एक दुजे को

प्रेम विहंगमहृदय का संगम

क्यूँ करते विच्छेद सम्बंध

अविरल बहा रहे अब नीर

ना बुझ रही मन की पीड़

लांघ दी वचनों की लकीर 

तिरस्कृत करते एक दुजे को

फिर भी खड़ा रहा मौन

निःशब्दमैं ना जाने क्यूँ?


धर्म-पंथ के जंजाल

क्यूँ हो रहे महा-विकराल

मानव से दानव का

ना

Tag: poetry और1 अन्य
Read More! Earn More! Learn More!