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मनु


स्वार्थ सिद्ध में सिद्धांत भुलाहै भुला सब संस्कार,

दो टके में आत्मा बेचीदेखो मनु बन रहा भगवान।

भक्ति भाव से वंचितदेखो है भूल रहा परोपकार,

माया मोह से बंधा मनसंसार त्याग रहा सुविचार।


राग-द्वेषलिप्सा युक्तक्यूँ कर रहा वरण पापाचार,

मनु कहाँ फँसा ब्रह्मजाल मेंक्यूँ सहे यह अत्याचार।

अंधकार से रज रहाकलुषित करते तुम्हें व्याभिचार,

सिद्धपुरुष अब कहां मिलेचहुं और मचा हाहाकार।


ओज-तेज सब धूमिल हो रहेप्राण तज रहे निरंकार,

तपस्यासमाधि सब छूटे पिछेबचा बस अहंकार। 

ग्लानि भावना नहीं

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