“ख़त”
ख़ामोशियों का चेहरे पर पर्दा डाल रखा है,
अफ़साना इश्क़ का संदूक में छुपा रखा है,
कहीं ख़ुल ना जाए उन बंद पन्नो की दास्तां,
तेरे ख़तों को दुनिया से कुछ यूँ छुपा रखा है।
हाँ! कलाम थे लिखे जिनमें तेरे इक़रार के,
कुछ नग़मे, कुछ फ़साने, तेरे मेरे प्यार के,
ख़्वाबों को अल्फ़ाज़ों में पिरोया था तब,
ख़त लिखे जब तुमने कभी मेरे इंतेज़ार में।
तमन्ना रहती थी, आँखें थकती नहीं थी,
नज़र घर की तरफ़ आती राह पर रहती थी,
कभी कोई डाकिया मेरा नाम पुकार लेगा,
मेरे दिल की धड़कनों को पंख लगा देगा,
और थमा देगा मेरे कांपते हाथों पर काग़ज़,
उस लिफ़ाफ़े पर होगी तेरे लबों की मिठास,
और अंदर जिसके होगा तेरी ख़ूशबु लिए ख़त,
हरफ़ कई, दिखती जिनमें मुझे तेरी प्यास।
मालूम है कि बड़े जतनों से तुमने लिखा है,
ख़त की सिलवटों पर अक़्स तेरा दिखता है,
हाँ, कहीं मुस्कुराहट तेरी काग़ज़ पर छपी है,
हाँ, अश्क़ लिए लिखावट तेरी बड़ी सच्ची है,
प्रीत कोई कैसे लफ़्ज़ों से सजा