“जीवन”
आओ सुनो ध्यान लगा
एक बात बताता हूँ
जीवन की सच्चाई से
आज अवगत करवाता हूँ।
क्या जीवन सरल है?
या है एक जटिल प्रहेलिका
क्या है शीतल नीर यह
या तपती वेदिका?
क्या है निकला तूलिका से
इंद्रधनुषी रंगों का मेला
या निस्सीम तिमिर से घिरा
पथिक थका, अकेला।
प्रश्न क्या यही उमड़ रहे
हृदय में तुम्हारे
एकाग्र होकर सुनो कभी
जीवन राग तुम्हें पुकारे।
हाँ! गोते लगाने होंगे तुमको
इसके अथाह नदिश में
मोती मिलेगें ज्ञान के
अमूल्य, चमकते इस में
चरितार्थ करते व्यक्तित्व
तुम्हारा जीवन में
जितने पिरो सको पिरो लो
क्यूँ बैठे चिंतन में।
चलो मान लिया
जीवन में सुख-दुःख का अंत नहीं
अवसाद का भी तो यह तंत नहीं
फिर क्यू सकुचाए, मुरझाए
यूँ गम्भीर से दिख रहे
मोहपाश के जंजाल
निसर्ग क्यूँ नहीं कर रहे
बस ठान लो एक बार
त्याग करोगे काम-क्रोध का
परनिंदा और संताप का
और मनाओगे उत्सव
ईश प्रसाद इस जीवन का।
क्या कुटीलता इतनी है
तुम्हारे मन मंदिर में