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“इंसान”
इंसान का ईमान क्या है, सवाल पेचीदा बड़ा है,
मज़हब पर लड़ते, देखो! आज़ अंधेरों में खड़ा है।
बाज़ार में बोली लग रही, कोड़ियों में बिक रही,
इंसान की औक़ात दिख रही, बेज़ान मरा पड़ा है।
अरे अहमक़ क्यूँ समझता ख़ुद को ख़ुदा से बड़ा है,
दौलत के नशे में चूर, बेगैरत, तू भाई से भी लड़ा है,
ईमान को बेच, अब क्या रूह का भी सौदा करेगा,
पर्दा हटा आँखों से, देख आइने के सामने
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