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“हाल-ऐ-ज़िंदगी”
थे कभी ज़िंदा दिल हम भी ऐ मेरे दोस्त,
अब ज़िंदा रहने का बहाना ढूँढने में लगे हैं।
एक ज़माना था, जी लिए जी भर कर,
अब वक़्त भी उधार लिए जी रहे हैं,
थी कोशिशें लाख़ कशिश को पाने की,
अब साँसें भी गिन गिन कर जी रहे हैं।
तमन्ना-चाहत थी, कुछ कर गुज़रने की,
अब कुछ हौंसला बटोरनें में लगे हैं,
ज़ुनूने-इंक़लाब था हर सोच में एक वक़्त,
अब रहम की गुंजाइशों में लगे हैं।
रंजिशें थी, मोहब्बत थी, दिल जिंदा था,
अब एक रूह की तलाश में लगे हैं,
अश्क़ थे, गीले शिकवे भी थे किसी से,
अब प्यासे, दरिया की तलाश में लगे
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