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आशा


एक दीप जला मन में

जैसे सूर्य चमकता तिमिर में

इतिहास रचने को आतुर

मैं मस्त पवन अम्बर में

बुदबुदा एक मुस्कुराहट का

सजा मेरे अधरों पर

शब्द मेरे नाम के

उकरे जब पाषाणों पर

निमित्त करते पूरे

सपनें मेरे जीवन के

जो पार कराते नैय्या 

चप्पू वो आशा के

नव-अध्याय लिखूँ अब

आशा की स्याही से

अब डर ना मुझे बंधन का

जब पंख लगे आशा के।


बस यही रहा सोच अब 

अपने मन-मशतिष्क में

कैसे एक राग बनाऊँ 

आशाओं के जीवन में 

जो दे एक जागृति मुझे

जो उफान दे शिथिल शिरा में

जो हुंकार भरे मेरे मन में

और टंकार भरे पुरंदर में

जिसे देख कौंधे बिजलियाँ

और फड़के भुजा मेरी

बस अब सुनाता 

कुछ शब्द

जो है समेटे निज में

चिंगारी मेरी आशा के लिए। 


बस 

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