“आँसूँ”
आँसू क्या है, जानना चाहो तो,
किसी प्रेमी से ना पूछो,
पूछो उस बुढ़ापे से,
जिसे एक झटके में
अपनों ने छोड़ दिया।
जिस पेड़ ने उम्र भर छाँव दी
उस लड़खड़ाते बचपन को
आज उसने बड़े होकर,
उसकी जड़ों को उखाड़ दिया।
और छोड़ दिया अकेले
उसे मर जाने को,
ढलती उम्र की अंधेरी शाम में
आँसू बहते सुनी आँखों से,
राह तकती रही रात के ढल जाने में।
आँसूँ क्या है, जानना चाहो तो,
किसी प्रेमी से ना पूछो,
पूछो उन माँ-बाप से,
जिनके आँख के तारे को,
मिली अमरता देशप्रेम की।
न्योछावर किया अपना तन-मन,
देश के नाम ओढ़ा कफ़न,
दिया आत्म बलिदान जिसने,
क्यूँ भूल गए उस सपूत को,
जिसने त्यागे अपने सात वचन।
हाँ वचन वही जो लिए थे
अग्नि के सम्मुख सात फेरों पर,
वचन जीवन-मरण का,
उसकी बेवा से पूछे कोई,
कि उसके नन्हे का अब कौन बचा,
पूछो उन माँ-बाप से
जिनकी कोख़ का उजाड़ हुआ,
और पूछो उस बहन से
जिनका वो संसार बिखरा
टूटी उसकी राखी की डोर
जो कभी सजती थी कलाई पर,
आज वही डोर साँसों की टूट गई
और आँसूँ सबकी आँखों में दे गई।
अब क्या ही बचा जीवन में,
जिनका हर सपना अब टूट गया,
बस आँसूँ समेटे वो सुनी आँखें,
राह