“आख़िरी पैग़ाम”
वक़्त के सितम से अब बिख़र रहा हूँ,
जिन धड़कनों पर तेरा नाम लिखा था
आज उन साँसों से मैं बिछड़ रहा हूँ,
लहू का हर कतरा तेरे नाम किया था
उस लहू से आख़िरी पैग़ाम लिख रहा हूँ।
मौसम जो दिए तूने सिर्फ़ दर्द भरे मुझे
उनसे बारिश की उम्मीद क्यूँ कर रहा हूँ,
गुलिस्ताँ मेरे नसीब में था नहीं कभी
बस काँटों की सेज़ पर तड़प रहा हूँ,
वक़्त के सितम से अब बिख़र रहा हूँ।
कभी सपनों में तूने जगह दी तो नहीं
हर सपना तुझ पर कुरबान कर रहा हूँ,
मासूम दिल को कभी क़ुबूल किया नहीं
उस दिल को संदूक में बंध कर रहा हूँ,
वक़्त के सितम से अब
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