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यादों की किताब

कल बड़े दिनों बाद यादों की किताब खुली
थोड़ी पुरानी हो गई थी..थोड़ी धूल जमी थी

कुछ पन्ने पलटने के बाद ये एहसास हुआ
जो मै था कभी अब वो हूं नहीं
और मैं जो हूं अभी वो मै हूं ही नहीं

उसमे
पुराने कुछ सपने मिले
कुछ पराए कुछ अपने मिले
कुछ रिश्ते सच्चे मिले
कुछ धागे कच्चे मिले

ढेर सारी बीती बातें मिली
कई सारे वादे मिले
कुछ कहानियां मिली
कुछ खबरें मिली

थोड़ी खुशियां मिली..
थोड़े मुस्कुराते हुए गम
थोड़ी जीत थोड़े हार मिले

थोड़ा गुजरा हुआ पल मिला
कुछ गुजारे हुए पल मिले
जेहन के कुछ सवाल मिले
जिंदगी के दिए कुछ मलाल मिले
कुछ उम्मीदें मिली
कुछ अधूरी ख्वाहिशें मिली


थोड़ा आवारगी थोड़ा पागलपन थोड़ी सादगी मिली...
थोड़ी तन्हाई थोड़ी बेचैनी
और इन सब के बीच थोड़े हम मिले...

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