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गज़ल • जख़्मी परिंदे

ज़ख्मी परिंदों को दाना किस लिए 
जाने वालों को बुलाना किस लिए

जिंदा और मुर्दा फिर परखना क्या 
ठुकराए को आजमाना किस लिए

मयखाने की रात और पिया जाना
फिर ये बहस और बहाना किस लिए

सलीका और हुनर दिल तोड़
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