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स्मृतियाँ

तुम्हारी स्मृतियाँ मेरे भीतर
ऐसे आती है जैसे
पत्थरों पर घास उग आती हैं
और मेरे भीतर पनपती है जैसे
गर्मी की दोपहर में
सन्नाटें का शोर पनपता है।
तुम्हारी स्मृतियाँ मुझे
तुम्हारे होने का अहसा
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