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दो दिन का गुस्सा!

"दो दिन का गुस्सा"




वो उसका लहज़ा से भरा गुस्सा

वो उसकी यादों से भरा इक किस्सा

हर सिम्त से आती हुई एक धूल

कई बातों में उसकी उलझी हुई भूल

बर्क-ऐ-तजल्ली सी चमकती हुई मुझ पर

आब-ए-रवा सा बहती हुई मुझ पर

आलाम-ए-इंसानी में डूबा हुआ वो

वो दो दिन के गुस्से में लाल होता हुआ वो

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