सृजन का बीज हूँ मिट्टी में ज़्यादा रह नहीं सकता,
तेरी ख़ातिर मैं दुनिया से जु़दा अब रह नहीं सकता |
कर लूँगा मैं जीवन मुक्कमल अपने तन मन से,
अभी जीवन से ज्यादा पा लूँगा ये कह नहीं सकता |
तेरे साथ में हो सकती थी ये दुनियाँ मुट्ठी में,
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