टूटी बेदम दीवारों को
सपनों का महल बनाने की कशमकश में
भूल गया था उस बारिश को
जिसमें कागज की नावों संग खेला करता था
छोड़ आया था उस हवा को
जिसमें बेफिक्री के साथ पतंगे तैरा करती थी।
टटोल रहा था
वसीयतों की, बन्द पड़ी उन सन्दूकों को
संभाल रखा था जिनमें उम्मीदों के कुछ सवालों को
बहुत जोर आजमाईश की किस्मत ने
फिर भी खोल ना पाया पत्थर हो चुके उन जवाबों को।
अलमस्त हुआ करता था कभी
अजनबी बना
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