तुम्हें सोचूँ तो लगता हैं जैसे
गुलज़ार की कोई मख़मली नज़्म
उन्ही के मख़मली आवाज़ में
सुन रहीं हूँ..
तुम्हारी आँखें,
मानो मुक़द्दस आयतें हो कोई
चाँद की मिश्री
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तुम्हें सोचूँ तो लगता हैं जैसे
गुलज़ार की कोई मख़मली नज़्म
उन्ही के मख़मली आवाज़ में
सुन रहीं हूँ..
तुम्हारी आँखें,
मानो मुक़द्दस आयतें हो कोई
चाँद की मिश्री