
कविता - प्रकाश-छाया
कवि - जोत्सना जरी
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दर्द के शोर को छोड़कर
चलो घूमें
दूसरे क्षितिज की तलाश में
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बिना भाषा के सिर्फ हवाएं बोलती हैं
वे बेतरतीब ढंग से उड़ते हैं
बालों में
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सूर्योदय और सूर्यास्त के रंगों में
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