ऐ ख़ुदा
ऐ ख़ुदा मैंने दिल से की तेरी बंदगी, माना तेरा हर हुक्म
फिर क्यों फैला है य ज़ुल्मत-सरापा ।
है मेहरूम क्यों मेरी आस्ता तेरे नावाज़ से ,
Read More! Earn More! Learn More!
ऐ ख़ुदा
ऐ ख़ुदा मैंने दिल से की तेरी बंदगी, माना तेरा हर हुक्म
फिर क्यों फैला है य ज़ुल्मत-सरापा ।
है मेहरूम क्यों मेरी आस्ता तेरे नावाज़ से ,