
भौतिकता के आकुल युग में
व्याकुल मन को क्या-क्या समझाएंँ?
समृद्धि केन्द्र जब 'स्वयं ' बना हो
किस मुख से सामूहिकता का उपदेश सुनाएँ?
उन्नति की परिभाषा जब केवल अपना घर हो
फ़िर किस अँगुली पर औरों के दोष गिनाएँ?
तो क्या दोष युक्त ही नियति हमारी?
क्या यही प्रचलन जीवन की लाचारी?
संकुचित दृष्टि क्या प्रारब्ध बना अब?
क्या अवगुण ही सद्गुण पर भारी?
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