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फ़िर इक साल इतिहास बना..

त्राहि-त्राहि में

गुजरे साल के गुजरे मास,

राह कठिन थे,मुश्किल था लड़ना

कितनों ने खोए अपने ख़ास,

परिणाम देखता पीछे मुड़कर

थम जाता है मन का हुलास।


चाहे जो कुछ झेला हमनें,

चाहे देखा,व्यथित मनों का मेला हमनें,

जीत से प्यार किया,

हार भी स्वीकार किया,

कितने ही लक्ष्यों को भेदा हमनें,

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