
कहते हैं कि आदम और हव्वा में स्वर्ग में एक ऐसा फल खा लिया जिसे खाना वर्जित था। परिणाम यह हुआ कि उन्हें स्वर्ग से धकेल दिया गया। माना जाता है कि आदम दुनिया का पहला पुरूष था और उसने जो फल खाया था - वह प्रेम का फल था। प्रेम का फल खाने की सज़ा केवल आदम और हव्वा को ही नहीं मिली बल्कि अनगिनत लोगों ने प्रेम के प्रतिदान में उन प्रताड़नाओं को पाया है, जो प्रताड़नाऐं किसी के भी मनोबल को तोड़ सकती हैं। लेकिन प्रेम भी अद्भुत अनुभूति है। जब यह किसी के अंतस में जागृत होती है तो न प्रताड़नाओं की चिंता होती है, न प्रतिबंध डराते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जिस अनुभूति को दुनिया की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति माना गया है- जिस अनुभूति को जीवन का मंगलाचरण कहा जाता है, उस प्रेम के प्रति दुनिया का इतना दुराग्रह क्यों है?
कहते हैं कि रूक्मणि अपने माता- पिता की इच्छा के विपरीत श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती थीं। यह वह दौर था जब सामर्थ्यवान परिवार भी अपनी बेटियों को अपनी पसंद का वर चुनने की स्वतंत्रता देते थे। स्वयंवर इसी स्वतंत्रता का एक उदाहरण है। कृष्ण को तो यों भी अपने समय के सबसे धीरोदात्त नायकों में एक माना जाता है। ऐसे व्यक्ति से बेटी का विवाह होना किसी भी परिवार के लिये सुख और गौरव का विषय हो सकता था। लेकिन रूक्मणि को अपने प्रिय से विवाह करने के लिये प्रतिकूल परिस्थितियों से व्यतीत होना पड़ा। भारतीय वांग्मय में अनेक प्रेमकथाऐं हैं। लेकिन अधिकांश पात्रों को सुखपूर्ण जीवन जीने के लिये प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और यह स्थिति तो उस समाज की रही, जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेम को भक्ति का प्रणेता माना गया। महत्वपूर्ण है कि राधा श्री कृष्ण की पत्नी नहीं थी, प्रेयसी थी। पत्नी तो वह रायण नाम के गोप की थी।
प्रेम प्रसंगों की प्रताड़ना के अनेक उदाहरण हैं। कहानी चाहे सलीम -अनारकली की हो या हीर - रांझा की, सोहनी- महिवाल की हो या लैला मजनूं की। प्रेम तो एक मटकी के सहारे भी अपने प्रिय से मिलने के लिये चढ़ते हुए दरिया में उतर जाता हैॅ, लेकिन दुनिया को यह मिलन रास नहीं आता और वो सोहनी की मटकी को कच्ची मटकी से बदल देती है। कभी वो अनारकली को जिन्दा दीवार में चुनवा दिये जाने का हुकुम देती है तो कभी मजनूं को पत्थरों से पीटे जाने की सज़ा सुनाती है। कुछ दिन पहले जयपुर में एक पिता ने सुनियोजित तरीके से अपनी बेटी के घर जाकर उसके पति को गोलियों से भून दिया था। कसूर दोनों का सिर्फ इतना था कि दोनों ने प्रेम विवाह किया था। खाप पंचायतों के कारण न जाने कितने युवक-सुवती फंदों पर लटकने को विवश हुए हैं। उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में तो प्रेम के प्रति दुराग्रह का एक बहुत ही विचित्र प्रसंग सामने आया है। जिले के ग्वाटोली ग्राम में अंतरजातीय प्रेम विवाह करने वाले एक दंपत्ति और इस विवाह को स्वीकार करने वाले परिवार को जाति से बाहर निकाल दिया गया। बाद में कहा गया कि यदि विवाह करने वाली लड़की गोबर का सेवन कर लेती है तो परिवार को जाति में वापस ले लिया जाएगा। एक पूरी जातीय पंचायत का यह फरमान न केवल प्रेम के प्रति समाज के दुराग्रह का प्रमाण है, अपितु एक पूरे समूह की मानसिक विकृति का द्योतक भी है। भीड़ अपनी कुंठा को ऐसी ही विकृतियों के माध्यम से अभिव्यक्त करती है और भीड़ की ऐसी उद्घोषणाओं में विवेक कम दुराग्रह और कुंठा का बोलबाला अधिक होता है। दंपत्ति ने इस मामले की रिपोर्ट पुलिस में की है और पुलिस प्रकरण की जांच कर रही है। कुछ लोगो