
संत रविदास का मानना था, जो ब्रह्म को पहचानता है, वही 'ब्राह्मण' है - शास्त्री कोसलेंद्रदास
संत रविदास का मानना था, जो ब्रह्म को पहचानता है, वही 'ब्राह्मण' है। - शास्त्री कोसलेंद्रदास
राम नाम का रसायन पीकर संत रैदास मानव चेतना के ऐसे मुखर प्रतिनिधि हैं, जो छह शताब्दियां बीत जाने के बाद भी बिना किसी दल और जाति की राजनीति की गिरफ्त के भारतीय समाज में स्थापित हैं। इसका कारण है, उनका व्यापक स्वरूप। उनका यह स्वरूप जाति और वर्ण भेद से परे मानव मात्र को न केवल सम्मोहित करता है बल्कि उसे सत्य और सदाचार के पथ पर चलने की प्रेरणा भी देता है।
संत रविदास की साधना प्रेमा भगति है, जिसका मूलाधार अहंकार की निवृत्ति है। भक्ति और अभिमान साथ—साथ नहीं रह सकते। संत रैदास का मानना है कि जैसे कोई सुहागिन स्त्री अपने प्रेमास्पद के समक्ष संपूर्ण समर्पण करके प्रेम तत्व को जान लेती है, ठीक वैसे ही भक्ति पंथ का सार वही जीव जान लेता है, जो अपना सर्वस्व परमात्मा को समर्पित कर देता है। वे कहते हैं कि यदि जीभ से कुछ चखना है तो राम नाम का रसायन चखें। समकालीन समाज को झकझोरने के लिए उन्होंने मानव मात्र में उस परम सत्ता का वास बताया, जो सबके भीतर बैठकर सभी को संचालित करता है। रैदास कहते हैं — वही बाभन जो ब्रह्म पहचाने। सब जीवों में एक ही माने।। सब का लहूं एक—जैसा है। वह परमेश्वर ही सबकी देह के अंदर बैठकर उन्हें चला रहा है।
संत रविदास ऐसे संत—कवि थे, जिनके भीतर पल—पल परमात्मा को पाने की भारी तड़प थी। बाहरी जीवन के बजाय भीतरी यात्रा में सतत सावधान महात्मा रविदास ने ‘प्रभुजी तुम चंदन हम पानी, जाके अंग अंग बास समानी’ की रट लगा वैष्णव भक्ति धारा का अप्रतिम प्रसार किया। संसार में रहते हुए भी विराग को जीवन बनाकर संत रैदास ने भक्तिभाव की ऐसी अलख जगाई, जो सदियां बीत जाने के बाद आज भी असंख्य लोगों के लिए आकर्षण एवं प्रेरणा का केंद्र बनी हुई है।
लोकसंवादी संत रविदास —
सात शताब्दियों पहले संत रविदास ऐसे लोकसंवादी महात्मा हुए, जिन्होंने शास्त्रीय सिद्धांतों में बंधी भक्ति को अपने अलौकिक कृतित्व से समाज के प्रत्येक वर्ग लिए सुलभ कर दिया। काशी में जन्मे और पले—बढ़े रैदास ने स्वामी रामानंदाचार्य से राम नाम की दीक्षा पाकर सदाचार, सद्भाव और प्रेम से निर्गुण और सगुण भक्ति का ऐसा विस्तार किया, जिसने राजा—रंक के साथ ही लोक और शास्त्र के भेद को समाप्त कर दिया। संत साहित्य के विद्वानों के हिसाब से वे निर्गुण भक्ति धारा के साधक थे। महात्मा कबीर, धन्ना, सैन और पीपा उनकी गुरु परंपरा में उनके साथी थे। परमात्मा के सर्वसुलभ निर्गुण स्वरूप का उन्होंने भक्तिविभोर होकर व्यापक प्रसार किया। वे हमारी संवाद और सद्भाव की परम्परा के भी सनातन नक्षत्र हैं। संत रविदास को ही आम बोलचाल में संत रैदास के नाम से पुकारा जाता है।
वाणी विमल रैदास की —
सोलहवीं सदी में हुए भक्त चरित्र के अनुपम द्रष्टा एवं गायक नाभादास ने भक्तमाल में महात्मा रैदास के लोकोत्तर व्यक्ति