
मृणाल सेन की ‘नील आकाशेर नीचे’ (महादेवी वर्मा के संस्मरण ‘वह चीनी भाई’ पर आधारित फिल्म)
(स्वतंत्र भारत की पहली प्रतिबंधित फिल्म मृणाल सेन की ‘नील आकाशेर नीचे’ थी. यह महादेवी वर्मा के संस्मरण ‘वह चीनी भाई’ पर आधारित थी. हेमंत कुमार फिल्म के निर्माता थे. यह फिल्म 1959 में प्रतिबाधित हुई थी.) - अजय ब्रह्मात्मज
मुमकिन है शीर्षक बदल जाने और बंगाली में होने की वजह से महादेवी वर्मा के रेखाचित्र ‘वह चीनी भाई’ पर आधारित मृणाल सेन की फिल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ के बारे में हिंदी में विमर्श नहीं हुआ है. सिनेमा और साहित्य के संबंधों पर हो रहे विश्वविद्यालयों के शोध,पाठ्यक्रम और अकादमिक लेखों में भी इस फिल्म का उल्लेख नहीं मिलता. महादेवी वर्मा ने इलाहांबाद में मिले चीनी भाई के बारे में उसका मार्मिक संस्मरणात्मक रेखाचित्र लिखा. इस रेखाचित्र में एक चीनी भाई जो सालों पहले चीन से बर्मा आ गया था. रोज़गार की तलाश में बर्मा से इलाहाबाद आकर फेरी का धंधा करता है. वह सिल्क कपडे बेचता है. पहली ही मुलाक़ात में महादेवी वर्मा जब उसे मना करती हैं कि ‘कुछ नहीं लेना है भाई!’ वह भाई संबोधन से अटक जाता है और पूरे विश्वास से कहता है ’हमको भाय बोला है, तुम ज़रूर लेगा, ज़रूर लेगा- हाँ?’ धीरे-धीरे लेखिका और चीनी का परिचय गाढ़ा होता है. लेखिका को चीनी भाई के प्रवासी जीवन की कहानी पता चलती है. कैसे वह अपनी बहन से बिछुड़ कर रंगून,फिर कलकत्ता और आखिर में इलाहाबाद पहुंचा है. लेखिका और चीनी भाई का भावनात्मक संबंध भरोसे और प्रेम के साथ आगे बढ़ता है. फिर एक दिन चीनी भाई सिल्क का पूरा गट्ठर उसे एक साथ बेच कर चीन की लडाई में शामिल होने के लिए लौटना चाहता है. स्वदेशी आन्दोलन में हिस्सा ले रही और स्वदेशी की हिमायती लेखिका की एक सहेली जब उस पर सिल्क रखने के लिए कटाक्ष करती है तो लेखिका चीनी भाई के बारे में नहीं बताती वह भाई तो लेखिका के स्मृति पट पर अंकित है.
महादेवी वर्मा के इस रेखाचित्र को मृणाल सेन ने फिल्म में रूपांतरित किया. उन्होंने कहानी की कथाभूमि इलाहबाद से बदल कर कलकत्ता कर दी. साथ ही चीनी चरित्र को वांग लू नाम दिया. फिल्म में लेखिका(महांदेवी वर्मा) का नाम बसंती हो गया. वह कांग्रेसी कार्यकर्ता हो गयीं. मृणाल सेन ने इसे चौथे दशक के कलकत्ता में चित्रित किया है. फिल्म में वांग लू बर्मा से नहीं,सीधे चीन से आया है. कपडे बेच्गने के सिलसिले में वह बसंती से मिलता रहता है. बसंती उसके प्रति स्नेह रखती है. वांग लू को अपना भाई मानती है.
20 फरवरी 1959 को रिलीज़ हुई ‘नील आकाशेर नीचे’ में एक चीनी और एक भारतीय के संबंध को मानवीय स्तर पर चित्रित किया गया है. उनके पति,सास और नौकर भी किरदार के तौर पर जुड़ जाते हैं. फिल्म की कहानी चीन के शानतुंग भी जाती है. फिल्म में दो-तीन फ्लैशबैक में चीन की कहानी चलती है. वहां के जमींदार और बहन के जरिये हम वांग लू की पीड़ा से परिचित होते हैं. फिल्म में खूबसूरती के साथ चीन के तत्कालीन हालत को पिरोया गया है. तब जापान ने चीन के नानचिंग शहर पर भयानक हमला किया था. इस हमले का रविंद्रनाथ टैगोर ने विरोध किया था. उन्होंने जापान के कवि मित्र नागुची को पत्र लिखा था. उन्होंने लिखा था.’मैं उम्मीद करता हूँ कि आप के देश के लोग,जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हूँ,सफल न हो पाएं और पश्चाताप करें.’ वांग लू जापान के खिलाफ लड़ने के लिए लौटता है. मृणाल सेन ने चीन के संघर्ष और भारत की आज़ादी के संघर्ष को वांग लू और बसंती के साथ एक ज़मीन पर लाकर जोड़ा है.
रेखाचित्र के अनुसार फिल्म में भी चीनी भाई बताता है कि वह फारेनर नहीं है,वह तो चीनी है. उसकी चमड़ी गोरी नहीं है. उसकी आँखें नीली नहीं हैं. उसके कहने का आशय है कि वह अँगरेज़ नहीं है. पिछली सदी के चौथे दशक में भारत और चीन लगभग एक जैसी स्थिति में थे और अपनी आज़ादी के सपने बुन रहे थे. भरता ने स्वतंत्रता और चीन ने मुक्ति की राह चुनी थी. दोंनों के रास्ते अलग थे. भारत कांग्रेस के नेतृत्व में तो चीन कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में अपने नागरिकों को लामबंद कर रहा था. ’नील आकाशेर नीचे’ में बगैर किसी भाईचारे के नारे के ही एक चीन के भाई और भारत की बहन के बीच एक रिश्ता बनता दिखाई देता है.
यह फिल्म अवश्य देखी जानी चाहिए. खासकर सिनेमा और साहित्य के शोधार्थियों के लिए यह ज़रूरी है. इसके साथ ही भारतीय फिल्मों में चीनी किरदारों के चित्रण के सन्दर्भ में यह ज़रूरी फिल्म है. यह फिल्म चीन के किरदार की पॉजीटिव छवि रचने के साथ हमदर्दी भी जाहिर करती है. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच आई खटास ने सदियों के सांस्कृतिक संबंध को खट्टा कर दिया है. भारत-चीन युद्ध को भारत में चीन की धोखेबाजी के रूप में देखा जता है. चीन ने कभी इस धारणा को समझने और मिटाने का प्रयास नहीं किया. ताज़ा स्थिति भी संतोषजनक नहीं. सीमा व