
सुहूलत से गुज़र जाओ मिरी जाँ
कहीं जीने की ख़ातिर मर न रहियो
हमारा उम्र-भर का साथ ठेरा
सो मेरे साथ तू दिन-भर न रहियो
अगर आप जॉन एलिया का परिचय पाना चाहते हैं तो 'मैं जो हूं जॉन एलिया हूं' को जरूर पढ़े! शायरी के शौकीन भी इस किताब को पढ़ सकते हैं, लेकिन शेरों में बहुत ज्यादा गहराई, मार्मिकता, सघनता की चाह रखने वालों को यह किताब निराश कर सकती है. उर्दू कम जानने वाले हिंदी के पाठकों को, उर्दू शब्दों के मायने दिये जाने के बावजूद, शेरों को पढ़ने में दिक्कत होगी और बार-बार अर्थ ढूंढने से पढ़ने का प्रवाह बाधित होगा. मैं जो हूं जॉन एलिया हूं से एक रचना:
‘हिज्र (वियोग) की आंखों से आंखें तो मिलाते जाइये
हिज्र में करना है क्या ये तो बताते जाइये.
बन के खु़शबू की उदासी रहिये दिल के बाग़ में
दूर होते जाइये नज़दीक आते जाइये.
जाते-जाते आप इतना काम तो कीजे मिरा
याद का सारा सरो-सामां (सामान) जलाते जाइये.
रह गयी उम्मीद तो बर्बाद हो जाऊंगा मैं
जाइये तो फिर मुझे सचमुच भुलाते जाइये.
ज़िन्दग़ी के अंजुमन का बस यही दस्तूर है
ज़िन्दग़ी के अंजुमन का बस यही दस्तूर है
बढ़ के मिलिये और मिल कर दूर होते जाइये.
आखि़रश रिश्ता तो हम में इक खु़शी, इक ग़म का था
मुस्कुराते जाइये आंसू बहाते जाइये.
आप को जब मुझ से शिकवा ही नहीं कोई तो फिर
आग ही दिल में लगानी है लगाते जाइये.
आप का मेहमान हूं मैं आप मेरे मेज़बान
सो मुझे ज़ह्रे-मुरव्वत (शील संकोच का विष) तो पिलाते जाइये.
है सरे-शब (रात्रि का प्रारम्भ-काल) और मिरे घर में नहीं कोई चिराग
आग तो इस घर में जानना लगाते जाइये.’