
प्रयागराज में पौष पूर्णिमा याने 13 जनवरी से शुरू हुआ कुंभ मेला 26 फरवरी याने महाशिवरात्रि तक चलेगा । कुंभ का मेला भारत के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों में एक है। इसके महत्व का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे वर्ष 2017 में यूनेस्को की मानवता की अमूर्त संास्कृतिक विरासतों में शामिल किया गया।
कुंभ का आयोजन देश के चार शहरों में होता है। जब बृहस्पति वृष राशि में और सूर्य मकर राशि में होता है, कुंभ का आयोजन प्रयागराज में होता है। बृहस्पति और सूर्य दोनों सिंह राशि में हों तो कुंभ का आयोजन नासिक में किया जाता है। बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में हो तो कुंभ का आयोजन हरिद्वार में होता है और जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में हो तो महाकुंभ का आयोजन उज्जैन में होता है। चूँकि बृहस्पति को एक राशि में लौटने में लगभग बारह वर्ष का समय लगता है, इसलिये महाकुंभ का आयोजन भी बारह वर्ष में होता है। लेकिन हर छः वर्ष में अर्द्धकुंभ का आयोजन किया जाता है।
कुंभ का अर्थ होता है घड़ा या जल रखने का एक पात्र। कुंभ के आयोजन की अवधारणा कई दैवीय प्रसंगों से जुड़ी है। इनमें सबसे प्रमुख यह है कि जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया तो समुद्र से अमृतघट भी प्राप्त हुआ। देवताओं के इशारे पर इंद्र का बेटा जयंत उस अमृतघट को लेकर भाग खड़ा हुआ तो दानवों ने उसका पीछा किया। अमृतघट को पाने के लिये देवताओं और दानवों में आकाश में ही संघर्ष शुरू हो गया और इसी बीच अमृत की कुछ बूँदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरी। ये चार स्थान हैं हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन। मान्यता है कि आकाश में ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति के समय इन स्थानों की नदियों में मौजूद अमृत की वो बूँदें सक्रिय हो जाती हैं और स्नान करने पर श्रद्धालुओं के जीवन को दिव्यता प्रदान करती है। ग्रहों की इसी विशेष स्थिति में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
जिन चार नगरों में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है, वो चारों नदियों के किनारे बसे हैं। हरिद्धार गंगा नदी के किनारे, उज्जैन क्षिप्रा नदी के किनारे, नासिक गोदावरी नदी के किनारे और प्रयागराज गंगा, यमुना सरस्वती नदी के संगम पर स्थित है। क्या यह सिर्फ संयोग है कि दिव्य अमृतकलश से पृथ्वी पर गिरी बूँदों ने अपने लिये नदियों को ही चुना। दरअसल, पानी को भारतीय परंपराओं में हमेशा पवित्र माना गया है। जिन विष्णु भगवान को सृष्टि का पालनकर्ता माना जाता है, उनका निवास पानी, जिसका एक पर्याय नारा भी है, में माना गया है। पानी में अपना घर याने अयन बनाने के कारण ही विष्णु को नारायण भी कहा जाता है। पानी के प्रति भारतीय मनीषा की श्रद्धा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हमारे यहाँ हर पूजा में पानी का होना आवश्यक माना गया है।
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