विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्! पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् !!'s image
583K

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्! पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् !!

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।

पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥

पढ़ने-लिखने से शऊर आता है. शऊर से काबिलियत आती है. काबिलियत से पैसे आने शुरू होते हैं. पैसों से धर्म और फिर सुख मिलता है.



उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥

(सुप्तस्य – सोते हुए)

कार्य करने से ही सफलता मिलती है, न कि मंसूबे गांठने से. सोते हुए शेर के मुंह में भी हिरन अपने से नहीं आकर घुस जाता कि ले भाई खा ले मेरे को, तुझको बड़ी भूख लगी होगी.



मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं मुखे ।

हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते ॥

मूर्खों की पांच निशानियां होती हैं, अहंकारी होते हैं, उनके मुंह में हमेशा बुरे शब्द होते हैं,जिद्दी होते हैं, हमेशा बुरी सी शक्ल बनाए रहते हैं और दूसरे की बात कभी नहीं मानते.


श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः ।

परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥

(यदुक्तं – जो कहा गया, परपीडनम् – दूसरे को दुःख देना)

करोड़ों ग्रंथों में जो बात कही गई है वो आधी लाइन में कहता हूं, दूसरे का भला करना ही सबसे बड़ा पुण्य है और दूसरे को दुःख देना सबसे बड़ा पाप


आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्शो महारिपुः ।

नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कुर्वाणो नावसीदति ॥

(रिपु: – दुश्मन)

आलस ही आदमी की देह का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और परिश्रम सबसे बड़ा दोस्त. परिश्रम करने वाले का कभी नाश या नुकसान नहीं होता.



यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ।

लोचनाभ

Read More! Earn More! Learn More!