
कभी कभी चुप चाप
ख़ुद से रूबरू हो
एक दोस्त की तरह
जिसकी सुन सको
जो तुम्हारी सुने
वो तुम्हें जान ले
तुम उसे जान लो
अजब है रिश्ता
ख़ुद से तुम्हारा
तुम में सब है
मिलो ख़ुद से
सफ़र पे अपने तुम ख़ास तवज्जो देना
मंज़िल का क्या है मिल ही जाती है
परिंदो ने अभी तक चहचहाना नहीं छोड़ा
वरना बस्ती तो वीरान कब की हो चली थी
ढूँढता रहता हूँ सफ़र का कोई बहाना
मंज़िलों में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं
जज़ीरा डूब ना जाए दिल का कहीं,
ज़मानों बाद ख़ूँ में एक लहर उठ्ठी है
बंजर ज़मीनों में भी दरख़्त उगते हैं
हौंसला चाहिए बस कलेजे भर का।
सच्चा इश्क़ भी हर किसी के बस की बात नहीं
कलेजा चाहिए यह दिल किसी को देने के लिए
जो ज़हन में है उसे क़लम को सौंप दो
अगर सच है तो दिलों में उतर जाएगा
परवाज़ रख तू अपनी बुलंद
राह में परबत भी तो आते हैं।
दिल से उठ्ठी आवाज़ दबाया नहीं करते
अनमोल मशवरे कभी गवाया नहीं करते
परवाज़ रख तू अपनी ऊँची