
ये सोचना ग़लत है के' तुम पर नज़र नहीं,
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बेख़बर नहीं.
अब तो ख़ुद अपने ख़ून ने भी साफ़ कह दिया,
मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं.
ज़रा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है,
नदी का साथ देता हूं, समंदर रूठ जाता है.
ग़नीमत है नगर वालों लुटेरों से लुटे हो तुम,
हमें तो गांव में अक्सर, दरोगा लूट जाता है.
जिसका तारा था वो आंखें सो गई हैं,
अब कहां करता है मुझ पर नाज़ कोई.
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके चुपके कर देती है जाने कब तुरपाई अम्मा.
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़सीम हुईं, तब-
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा.
अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है,
अम्मा जी की सारी सजधज, सब ज़ेवर थे बाबूजी.
कभी बड़ा सा हाथ ख़र्च थे कभी हथेली की सूजन,
मेरे मन का आधा साहस, आधा डर थे बाबूजी.
मुझे मालूम है मां की दुआएं साथ चलती हैं,
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है.
दिलों की बातें दिलों के अंदर ज़रा सी ज़िद से दबी हुई हैं,
वो सुनना चाहें, ज़ुबां से सब कुछ मैं करना चाहूं नज़र से बतियां
ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है,
सुलगती सांसें, तरसती आंखें, मचलती रूहें, धड़कती छतियां.
हम उसे आंखों की दहलीज़ न चढ़ने देते,
नींद आती न अगर ख़्वाब तुम्हारे लेकर.
एक दिन उसने मुझे पाक नज़र से चूमा,
उम्र भर चलना पड़ा मुझको सहारे लेकर.
ऐसी भी अदालत है जो रूह परखती है,
महदूद नहीं रहती वो सिर्फ़ बयानों तक.
हर वक़्त फ़िज़ाओं में महसूर करोगे तुम
मैं प्यार की ख़ुशबू हूं, महकूंगा ज़मानों तक.
अगर नवाज़ रहा है तो यूं नवाज़ मुझे,
के’मेरे बाद मेरा ज़िक्र बार-बार चले.
ये जिस्म क्या है कोई पैरहन उधार का है,
यहीं संभाल के पहना, यहीं उतार चले.
घर के बुज़ुर्ग लोगों की आंखें क्या बुझ गईं,
अब रोशनी के नाम पर कुछ भी नहीं रहा.
आए थे मीर ख़्वाब में कल डांट कर गए,
क्या शायरी के नाम पर कुछ भी नहीं रहा.
यही ख़याल तो दामन को थाम लेता है,
हम उठ गए तो तेरी अंजुमन का क्या होगा.
मैं उसमें नज़र आऊं, वो मुझमें नज़र आए,
इस जान की ख़ुशबू में, उस जान की ख़ुशबू हो.
बाज़ार जा के ख़ुद का कभी दाम पूछना,
तुम जैसे हर दुकान में सामान हैं बहुत.
आवाज़ बर्तनों की घर में दबी रहे,
बाहर जो सुनने वाले हैं, शैतान हैं बहुत.
नज़दीकी अक्सर दूरी का कारन भी बन जाती है,
सोच समझकर घुलना