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राजेंद्र यादव - एक सहज, ईमानदार, बेबाक व बेखौफ लेखक

राजेन्द्र यादव हिन्दी के सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक थे। नयी कहानी के नाम से हिन्दी साहित्य में उन्होंने एक नयी विधा का सूत्रपात किया। उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सन् 1930 में स्थापित साहित्यिक पत्रिका हंस का पुनर्प्रकाशन उन्होंने प्रेमचन्द की जयन्ती के दिन 31 जुलाई 1986 को प्रारम्भ किया था। यह पत्रिका सन् 1953 में बन्द हो गयी थी। इसके प्रकाशन का दायित्व उन्होंने स्वयं लिया और अपने मरते दम तक पूरे 27 वर्ष निभाया।


मैत्रेयी पुष्पा: मुझ से आपका क्या संबंध रहा है राजेंद्र जी ?

मुझ से हमारा संबंध पूछ रही है मैत्रेयी !

(कुछ पल सोचकर )

सुनलो ऐसा ही लग रहा है कि मेरा और तुम्हारा

संबंध कृष्ण और द्रौपदी जैसा रहा है मैत्रेयी

यह भी कोई पूछने और बताने की बात है ?

आज मैं किस से पूछूं कोई बात राजेंद्र जी ....

अशोक प्रियदर्शी: राजेंद्र यादव के निधन की खबर सुनकर मन भारी है. जब हमलोगों ने लिखना शुरू किया था, उसके ठीक पहले वाली पीढी थी, जिसका अंत हो गया. वे नयी कहानी आंदोलन के प्रणेताओं में से एक थे. कमलेश्वर और मोहन राकेश का तो पहले ही निधन हो गया है और अब तो इस युग का ही अंत हो गया. वे काफी ईमानदार व्यक्ति थे और जो उनके मन में होता था, वही कहते थे. आप उनके विचारों से असहमत हो सकते हैं,लेकिन उनकी उपेक्षा नहीं कर सकते. अब हंस का क्या होगा, यह तो भगवान ही जानें?

खगेंद्र ठाकुर: राजेंद्र यादव हिंदी के बडे कथाकार थे. उन्होंने हिंदी कहानी के विकास के लिए काफी काम किया. उन्होंने अपने प्रयासों से कई नये कथाकारों को साहित्य जगत में स्थापित किया. हंस पत्रिका के जरिये उन्होंने वैचारिक क्रांति लाने का काम किया. उनके निधन से पूरा साहित्य जगत शोकग्रस्त है, साहित्य का इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा. मैं अभी दिल्ली में ही हूं और उनके अंतिम संस्कार में शामिल रहूंगा.

रवि भूषण: नयी कहानी आंदोलन के मित्रत्रयी में से एक राजेंद्र यादव का निधन हो गया. इस खबर से मैं बहुत दुखी हूं. राजेंद्र यादव का व्यक्तित्व अद्भुत था. वे एक सहज व्यक्ति थे, साहित्य के खेल तमाशों से उन्हें कभी कोई लेना-देना नहीं रहा. वे बेंत लेकर चलते जरूर थे, लेकिन कभी बेंतबाजी नहीं की. उन्होंने हंस पत्रिका के जरिये स्त्री विमर्श और दलित विमर्श को स्थापित किया. इसके पहले इन विषयों की गूंज सुनाई नहीं पडती थी. साहित्य जगत को राजेंद्र यादव ने एक कहानीकार, उपन्यासकार, अनुवादक और संपादक के रूप में जो कुछ दिया वह अविस्मरणीय है. नये कथाकारों को स्थापित करने में भी उनकी अहम भूमिका है. मैत्रयी पुष्पा और प्रभा खेतान जैसे साहित्यकार आज उन्हीं की वजह से स्थापित हैं. राजेंद्र यादव का निधन साहित्यजगत की अपूरणीय क्षति है.

महुआ मांजी: राजेंद्र यादव का निधन साहित्य जगत में एक युग का अंत है. नयी कहानी आंदोलन का युग अब समाप्त हो गया. मैं उन्हें इस युग का पुरोधा मानती हूं. उनके साहित्यिक अवदानों के लिए साहि

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