
हम बहुत कुछ
समेट लेना चाहते हैं
अपनी आँखों में..
समेटते हैं कि बाँट सके
उन ग़ैरहाज़िर आँखों के साथ
जिन्हें हम चाहते हैं
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हैं हम मिले सौ सौ दफा
फिर भी क्यों तू मिले अजनबी की तरह
है मंज़िलें सब कहीं यहां
फिर भी रास्तो में रास्ते उलझ रहे यहाँ
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यकीन
सबसे स्याह रात के पूरब से
आएगा सबसे लाल सूरज
बस, तुम्हारी उम्मीद भरी आंखों के लिए
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