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रंगीन सपनों का रजिस्ट्रेशन: प्रेम किशोर 'पटाखा' | हास्य कविता

कुछ होते हैं सपने रंगीन 

तो कुछ हसीन 

कुछ सपने देखते नहीं 

दिखाते हैं

सपनों ही सपनों में 

आपको झुलाते हैं। 


मंच पर आते ही वे 

फूल मालाओं से लद गए 

आगे-पीछे दाएं- बाएं 

चमचों से बंध गए 

चमचों ने आपको 

कंधों पर उठाकर 

जय-जयकार का नारा लगाया 

उन्होंने आपको अपने 

रंगीन सपनों में झुलाया 


भोली जनता 

उनके हसीन सपनों पर 

फिदा हो गई 

नेता जी के साथ 

चमचों की भीड़ विदा हो गई 

देवलोक में 

मुनिवर नारद आपकी वीणा के तार 

झनझना रहे हैं 

भक्तों को रंगीन सपनों से रिझा रहे हैं 


उधर जो लंबी लाइन 

धरती से उठकर 

आकाश की ओर आ रही है 

बढ़ती हुई महंगाई का 

Tag: satire और2 अन्य
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