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मिथिलेश बारिया की कविताएँ

तुम साँसों से नापते हो इसे

मैं ज़िन्दगी, दोस्तों में गिनता हूँ

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छत टपकती है उसके

कच्चे घर की ,

वो किसान फिर भी बारिश की

दुआ माँगता है....

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मेरे पास एक नदी थी.

मेरे पास एक नदी थी, एक पेड़ था,

एक छोटा पहाड़ था...

मैं खिलौनों की दुकानों से

वाकिफ नहीं था...


मैंने संभालकर रखे हैं,

कुछ पुराने खत और लिफाफे...

कल बच्चे ये न पूछ लें,

डाकिया कौन था...

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सच बोलने से...

सच बोलने से अब डरने लगा है...

वो बच्चा बड़ों-सी बातें करने लगा है...


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