
[अमृ्ता]
हाँ मैंने अपने आँचल का अम्बर बनाया है।
के कहीं गर मेरा रास्ता,
चाहतों से अलग जो चले। के कहीं गर मेरे सीने में,
साँस थोड़ी भी जो कम पड़े, मेरा अपना भी इक आसमाँ हो, ख़ुद को हर इक दिशा में बिखेरूँ,
मुझ को हर इक दिशा से बुलाना,
मैं अगर फिर से मिल भी जाऊँ
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