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'...मारो फिरंगी को' - मंगल पांडे

'...मारो फिरंगी को' - 

1857 में अंग्रेजों के खिलाफ सैनिक विद्रोह हुआ था। फौरी तौर पर कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी को लेकर भारतीय सैनिकों में आक्रोश था। लेकिन इस विद्रोह के पीछे देश को आजाद कराने की प्रबल इच्छा था। ऐसे में देश के तमाम हिस्सों से सैनिकों का एक ही लक्ष्य था अंग्रेजों को मारकर दिल्ली पर कब्जा करो। उसी दौरान मारो फिरंगी का नारा दिया गया था। कुछ लोग कहते हैं कि 1857 की क्रांति के जनक मंगल पांडे ने नारा दिया था, लेकिन राजस्थान का इतिहास बताता है कि राजस्थान के एरिनपुरा सैनिक छावनी में सैनिकों ने नारा दिया था -मारो फिरंगी। दरअसल यह अधूरा नारा है। पूरा नारा था-चलो दिल्ली मारो फिरंगी।

मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया।

मंगल पाण्डेय का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में 19 जूलाई 1827 को एक ब्राह्मण" परिवार में हुआ था। हांलाकि कुछ इतिहासकार इनका जन्म-स्थान फैज़ाबाद के गांव अकबरपुर को मानते हैं। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। "ब्राह्मण" होने के बाद भी मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए।

विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न १८५३ एनफ़ील्ड

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