
अब्दुल रहीम (अब्दुर्रहीम) ख़ानख़ाना यानि कि रहीम दास , मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न था। वे एक ही साथ कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे।
रहीम दास जी के दोहे में जीवन सार छुपा हुआ है. उन्होंने मानव जीवन में होने वाले उतार चढ़ाव, सुख दुःख एवं जीवन व्यहार के सन्दर्भ को अपने दोहों में बड़ी सरलता से पिरोया है. प्रस्तुत हैं रहीम दास जी द्वारा रचित जीवन को नई दिशा देने वाले दोहे:-
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
भावार्थ:-
रहीम दास जी कहते हैं कि अपने दु:ख अपने मन में ही रखने चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दु:ख को कोई बांटता नहीं है।
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर ।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर ।।
भावार्थ:-
रहीम दास जी कहते है कि जब ख़राब समय चल रहा हो तो मौन रहना ही ठीक है। क्योंकि जब अच्छा समय आता हैं, तब काम बनते देर नहीं लगतीं । अतः हमेशा अपने सही समय का इंतजार करे ।
बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय ।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ।।
भावार्थ:-
रहीमदास कहते हैं कि मनुष्य को बुद्धिमानी से व्यवहार करना चाहिए । क्योंकि अगर किसी कारणवश कुछ गलत हो जाता है, तो इसे सही करना मुश्किल होता है, जैसे दूध खराब हो जाये, तो हजार कोशिश करने के बाद भी उसमे से न तो मक्खन बनता है और न ही दूध ।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान ।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
भावार्थ :-
जिस प्रकार पेड़ अपने फल को कभी नहीं खाते हैं, तालाब अपने अन्दर जमा किये हुए पानी को कभी नहीं पीता है। उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति भी अपना इकट्ठा किये हुए धन से दूसरों का भला करते हैं।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
भावार्थ :-
इस दोहे में रहीम दास जी ने कहा है कि जिस प्रकार पौधे को जड़ से सींचने से ही फल फूल मिलते हैं । उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही समय में एक कार्य करना चाहिए । तभी उसके सभी कार्य सही तरीके से सफल हो पाएंगे।