
बाद-ए-बहार में सब आतिश जुनून की है
हर साल आवती है गर्मी में फ़स्ल-ए-होली
वली उज़लत
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सहज याद आ गया वो लाल होली-बाज़ जूँ दिल में
गुलाली हो गया तन पर मिरे ख़िर्क़ा जो उजला था
वली उज़लत
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वो तमाशा ओ खेल होली का
सब के तन रख़्त-ए-केसरी है याद
फ़ाएज़ देहलवी
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शब जो होली की है मिलने को तिरे मुखड़े से जान
चाँद और तारे लिए फिरते हैं अफ़्शाँ हाथ में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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होली के अब बहाने छिड़का है रंग किस ने
नाम-ए-ख़ुदा तुझ ऊपर इस आन अजब समाँ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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डाल कर ग़ुंचों की मुँदरी शाख़-ए-गुल के कान में
अब के होली में बनाना गुल को जोगन ऐ सबा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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पूरा करेंगे होली में क्या वादा-ए-विसाल
जिन को अभी बसंत की ऐ दिल ख़बर नहीं
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
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बहार आई कि दिन होली के आए
गुलों में रंग खेला जा रहा है
जलील मानिकपूरी
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मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
हम से तुम कुछ माँगने आओ