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Holi Shayari Holi Kavita Ghazal

बाद-ए-बहार में सब आतिश जुनून की है 

हर साल आवती है गर्मी में फ़स्ल-ए-होली 


वली उज़लत

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सहज याद आ गया वो लाल होली-बाज़ जूँ दिल में 

गुलाली हो गया तन पर मिरे ख़िर्क़ा जो उजला था 


वली उज़लत

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वो तमाशा ओ खेल होली का 

सब के तन रख़्त-ए-केसरी है याद 


फ़ाएज़ देहलवी

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शब जो होली की है मिलने को तिरे मुखड़े से जान 

चाँद और तारे लिए फिरते हैं अफ़्शाँ हाथ में 


मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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होली के अब बहाने छिड़का है रंग किस ने 

नाम-ए-ख़ुदा तुझ ऊपर इस आन अजब समाँ है 


शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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डाल कर ग़ुंचों की मुँदरी शाख़-ए-गुल के कान में 

अब के होली में बनाना गुल को जोगन ऐ सबा 


मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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पूरा करेंगे होली में क्या वादा-ए-विसाल 

जिन को अभी बसंत की ऐ दिल ख़बर नहीं 


कल्ब-ए-हुसैन नादिर

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बहार आई कि दिन होली के आए 

गुलों में रंग खेला जा रहा है 


जलील मानिकपूरी

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मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के 

हम से तुम कुछ माँगने आओ

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