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हे सांगा राणा! उठ, शर्माता क्यों है? युद्ध कर!

वीर महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) के झंडे के नीचे सारे राजस्थान के वीर बाबर से युद्ध करने के लिए जुटे थे। युद्ध के मैदान में पूरी वीरता से देर तक लड़ते लड़ते घायल राणाजी को अत्यधिक रक्तस्राव के कारण मूर्छा आ गयी। राणा को अचेत अवस्था में देखकर उनका महावत सावधानी से राणाजी के हाथी को युद्ध क्षेत्र से भगा ले गया। होश आते ही राणाजी को अपनी हार का पता चला तो वे क्रोध में पागल से हो गए। हारने की व युद्ध क्षेत्र छोड़ने की लज्जा ने उनको पूरी तरह से तोड़ दिया। युद्ध में उनका एक हाथ कट गया, एक पांव बेकार हो गया, एक आँख जाती रही। शरीर पर अस्सी घाव लगने के बावजूद उनको जीते जी युद्ध क्षेत्र छोड़ कर वापस लौटने वाली बात इतनी लज्जाजनक लगी कि उन्हें अपने जीवन से ही निराशा हो गयी। उन्होंने अपने आप को मरा हुआ मान लिया। अब किसी काम काज, खाने पीने इत्यादि में उनका मन नहीं लगता था। यहाँ तक कि उन्होंने लोगों से मिलना जुलना भी बंद कर दिया। महाराणा की यह मानसिक दशा देख हरिदास महियारिया नाम के एक चारण कवि से रहा नहीं गया। उन्होंने डिंगल में निम्न गीत रच कर राणाजी को सुनाया।

[गीत]

सतबार जरासंघ आगल श्री रंग,

विमुहा टीकम दीधा जंग।

मैलि घात और मधु सूदन।

असुर घात नांखै अलग।।1।।

पारथ हेकरसां हथणांपर,

हटियो त्रिया पडंता हाथ।

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