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हमने इश्क़ किया: गौरव सोलंकी

हमने इश्क़ किया

बंद कमरों में

फ़िजिक्स पढ़ते हुए,

ऊंची छतों पर बैठकर

तारे देखते हुए,

रोटियां सेक रही मां के सामने बैठकर

चपर-चपर खाते हुए.


हमने नहीं रखी

बटुए में तस्वीरें,

किताबों में गुलाब,

अलमारियों में चिट्ठियां.


हमारे कस्बे में नहीं थे

सिनेमाहॉल, पार्क और पब्लिक लाइब्रेरी

हम तय करके नहीं मिले,

हमने इश्क़ किया

जिसमें सब कुछ अनिश्चित था,

कहीं अचानक टकरा जाना सड़क पर

और हफ़्तों तक न दिखना भी.


और उन लड़कियों से किया इश्क़ हमने

जिन्हें तमीज़ नहीं थी प्यार की.

जिनके सुसंस्कृत घरों की

चहारदीवारी में

नहीं सिखाई जाती थी

प्यार की तहज़ीब.


हमने उनसे किया इश्क़

जिन्हें हमेशा जल्दी रहती थी

किताबें बदलकर लौट जाने की,

मुस्कुराकर चेहरा छिपाने की,

मंदिर के कोनों में

अपने हिस्से का चुंबन लेकर

वापस दौड़ जाने की.


उनकी भाभियां

उकसाती, समझाती रहती थीं उन्हें

मगर वे साथ लाती थीं सदा

गैस पर रखे हुए दूध का,

छोटे भाई के साथ का

या घर आई मौसी का

ताज़ा बहाना

जल्दी लौट जाने का.


हमने डरपोक, स

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