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गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत! वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत!! - कबीर
भले ही हिंदी साहित्य या हिंदी के लेखकों और कवियों से परिचित हो न हो पर संत कबीर का लिखा, ‘गुरु’ को समर्पित एक दोहा आप सभी ने ज़रूर पढ़ा या सुना होगा। 15वीं सदी के मशहूर कवि कबीर कबीर की भाषाएँ सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी हुआ करती थी। इनकी भाषा में आपको हिंदी भाषा की सभी बोलियों का मिश्रण मिलेगा, जिसमें राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी तथा ब्रजभाषा सम्मिलित है।
आईये पढ़ते हैं गुरु के लिए लिखे संत कबीर के सबसे मशहूर दोहे और उनकी व्याख्या –
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय!
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय!!
- कबीर
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट!
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट!!
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