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डॉ राहत इंदौरी के बेहतरीन शेर

बोतलें खोल कर तो पी बरसों

आज दिल खोल कर भी पी जाए


बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए

मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए


मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता

यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी


मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे

मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले


ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे

नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो


वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा

मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया


घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया

घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है


हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे

कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

Tag: shayari और2 अन्य
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