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Eid Shayari | ईद का चाँद तुम ने देख लिया, चाँद की ईद हो गई होगी

शहर ख़ाली है किसे ईद मुबारक कहिए

चल दिए छोड़ के मक्का भी मदीना वाले

[अख़्तर उस्मान]


है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से

जाते हो कहाँ जान मिरी आ के मुक़ाबिल

[मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी]


ईद का दिन है सो कमरे में पड़ा हूँ 'असलम'

अपने दरवाज़े को बाहर से मुक़फ़्फ़ल कर के

[असलम कोलसरी]


माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़

शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी

[जलील निज़ामी]


वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो

है ईद का दिन अब तो गले हम को लगा लो

[मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी]


ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा

कि तिरे यार को हम तुझ से मिला देते हैं

[मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी]


ऐ हवा तू ही उसे ईद-मुबारक कहियो

और कहियो कि कोई याद किया करता है

[त्रिपुरारि]


उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना

ये भी कहना कि मिरी ईद मुबारक कर दे

[दिलावर अली आज़र]


कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती

[ग़ुलाम भीक नैरंग]


जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें

ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही

[अमजद इस्लाम अमजद]


ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम

रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है

[क़मर बदायुनी]


तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी

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