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कविताओं से ज्यादा उनके व्यक्तिगत जीवन ने बहुत कुछ सिखाया - अंकुर मिश्रा

पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है

पर तू ज़रा भी साथ दे तो और बात है

डॉ. कुंवर बेचैन का जाना मेरे खुद के लिए एक बड़ी क्षति है, कुछ मुलाकातों ने इतना कुछ सिखा दिया था की उनसे बहुत कुछ सीखने की जिज्ञासा होने लगी थी, नहीं पता था की कविशाला द्वारा 'लाइफ टाइम अचीवमेंट' अवार्ड हमारे लिए आखिरी मुलाकात होगी! लोगो ने उनसे कविताओं के बारे में सीखा होगा मगर मै जब भी मिलता था कोशिश होती थी की जिंदगी के बारे के कुछ और सीख पाऊं, इतने सारे मुकाम हासिल करने के बाद 'साधारण' कैसे रहा जाता है यह सीख पाऊं, उपलब्धियों को कैसे सहेजा जाता है यह सीख पाऊं, उनसे यह सीख पाऊं आप इतना सब करने के बाद इतना सरल कैसे रह लेते हैं! मै आजकल के कुछ कवियों और लेखकों को देखता हूँ जिन्होंने चंद कविताओं और किताबो के बाद अपने अंदर घमंड की एक बड़ी दुकान बना ली है लेकिन आपने लाखो कविताएँ लिख दी, सैकड़ों किताबें लिख दी, हजारो कवि-सम्मेलनों में कविताएँ पढ़ दी फिर भी आपके अंदर एक जो सामान्य व्यक्ति रहता है, उसको कैसे आपने बनाए रखा है?'

मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यूँ डर रखूँ

ज़िंदगी आ तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ

डॉ कुंवर बेचैन एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने मेरी व्यक्तिगत जिंदगी में एक अलग छाप छोड़ दी! कविताओं से परे की दुनियाँ के बारे में जब उनके साथ बैठकर बात हुयी तो यह महसूस हुआ की एक ऐसा व्यक्ति जिसने हजारो कवि सम्मेलन में सिरकत की हो, जिसने न जाने कितने लोगो को कवितायेँ सिखाई है न जाने कितने लोगो के लिए आदर्श हैं और उस व्यक्ति के अंदर जैसे कोई बिल्कुल सामान्य व्यक्ति निवास करता हो! जब भी उनके घर जाना हुआ, उनके द्वारा हर ५ मिनट में यह पता करना की आप कहा पहुंचे हो, कहीं रास्ता तो नहीं भटक गए, आप फोन पर ही रहिये मै आपको रास्ता बताता रहूँगा....

शायद ही किसी व्यक्ति में इस तरह का व्यक्तित्व मैंने देखा था! डॉ

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