
सुब्ह सुब्ह इक ख़्वाब की दस्तक पर दरवाज़ा खोला' देखा
सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आए हैं
आँखों से मानूस थे सारे
चेहरे सारे सुने सुनाए
पाँव धोए, हाथ धुलाए
आँगन में आसन लगवाए
और तन्नूर पे मक्की के कुछ मोटे मोटे रोट पकाए
पोटली में मेहमान मिरे
पिछले साल
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